गीताप्रेस ट्रस्ट हिंदू धर्म की पुस्तकों को प्रकाशित करने वाली विश्व की सबसे बड़ी संस्था

खास बातें



  • सत्संग से शुरू होकर गीताप्रेस तक पहुंचा सफर

  • 10 रुपये के किराए के मकान में 23 अप्रैल 1923 को स्थापित हुआ था गीताप्रेस

  • घनश्याम दास जालान और महावीर प्रसाद पोद्दार ने संभाला गीताप्रेस




 

सत्संग से शुरू होकर गीताप्रेस के स्थापित होने के बाद आज गीताप्रेस ट्रस्ट हिंदू धर्म की पुस्तकों को प्रकाशित करने वाली विश्व की सबसे बड़ी संस्था है। सनातन धर्म के सिद्धांतों के साथ जयदयाल गोयन्दका ने 1923 में इसकी स्थापना की थी। मुख्य रूप से श्रीमद्भगवद्गीता छापने के लिए स्थापित इस प्रेस में प्रति दिन तकरीबन 50 हजार पुस्तकों की छपाई की जाती है। पिछले वर्ष नवंबर से गीताप्रेस के कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से प्रकाशन का काम प्रभावित है और पिछले माह आठ अगस्त से छपाई का काम पूरी तरह से ठप है।

कोलकाता से शुरू हुआ था यह सफर

गीताप्रेस के जनक जयदयाल गोयन्दका का जन्म चूरू (राजस्थान) के व्यापारी परिवार में हुआ था। सफल व्यापारी और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के जयदयाल गोयन्दका सेठ जी के नाम से मशहूर थे। सेठ जी व्यापार कार्य से कोलकाता जाते थे और वहां जाने पर सत्संग करवाते थे।

सेठ जी और सत्संग जीवन पर्यन्त एक दूसरे के पर्याय रहे। गीता प्रचार के लिए गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) में गीताप्रेस, सामूहिक रूप से लोगों के भवनत्-चिंतन, भजन, सत्संग के लिए स्वर्गाश्रम ऋषिकेश (उत्तराखंड) और भारतीय शिक्षण पद्धति से ज्ञानवान, चरित्रवान नई पीढ़ी के लिए चूरू राजस्थान में श्रीऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम का निर्माण कराया।

संस्था का प्रधान कार्यालय गोविंद भवन कोलकाता में है और एक रजिस्टर्ड सोसाइटी है। यहां हमेशा भजन कीर्तन और समय समय पर संत महात्माओं के प्रवचन होता रहता है। पुस्तकों की थोक व फुटकर बिक्री के साथ यहां हाथ से बने कपड़े, कांच की चूड़ियां, आयुर्वेदिक औषधियां की बिक्री होती है।